गुरुवार, 7 मार्च 2019

मुफ्त क़ानूनी सहायता आपका अधिकार है


भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) के तहत भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की बात की गयी है। समाज के सभी वर्गों को भारतीय न्यायिक प्रणाली में न्याय पाने का समुचित एवं सामान अवसरमिले, इसलिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 A भारत देश के ग़रीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करता है। निःशुल्क क़ानूनी सहायता का मतलब है किअभियुक्त या प्रार्थी को वक़ील की सेवाएं मुहैया करवाना। सीधे शब्दों में कहा जाये तो अपने देश में ज़्यादातर लोग जो जेलों में बंद हैं और जिनके ऊपर कोर्ट की कार्यवाही चल रही है, वह ग़रीब,अशिक्षित एवं अति पिछड़े वर्ग के लोग हैं। जिनको अपने अधिकारों के बारे में नहीं पता है। जिसकी वजह से वह जेल की यातनाओं का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनको उनके अधिकारों के बारे में न ही सिर्फ बताया जाये बल्कि क़ानूनी सहायता भी प्रदान की जाये। इन्हीं बातों पर जोर देते हुये माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने "कार्ति II बनाम स्टेटऑफ़ बिहार" में यह निर्णय दिया कि- "न्यायाधीश का यह संवैधानिक दायित्व है कि जब भी किसी असक्षम एवं आर्थिक रूप से असहाय अभियुक्त को उनके सामने प्रस्तुत किया जाये, तब वह सर्वप्रथम यह सुनिश्चित कर लें कि अभियुक्त को निःशुल्क क़ानूनी सहायता वकील के माध्यम से मिल रही है कि नहीं,अगर नहीं मिल रही है तो वक़ील का प्रबंध किया जाये, जिसका ख़र्च राज्य के कोष से वहन किया जायेगा।" तो चलिए इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं की निःशुल्क क़ानूनी सहायता देने के लिए अभी तक सरकार द्वारा क्या व्यवस्था की गयी है,और वह कौन लोग हैं जो इसके पात्र हैं, और जो इसके पात्र नहीं हैं, साथ ही किन दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी, औरआवेदन करने के लिए कहाँ पर जाना पड़ेगा। जिससे की आपको एवं आपके जानने वालों को निःशुक्ल क़ानूनी सहायता आसानी से मिल सके। संस्थागत व्यवस्था क्या है ? सन 1987 में भारतीय संसद ने "विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987" को पारित किया जो कि 9 नवंबर 1995 को पूरे देश में लागू किया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है कि सभी को न्याय पाने का समान अवसर मिले। समाज का कोई व्यक्ति न्याय पाने से इसलिए वंचित न रह जाये कि वह ग़रीब, दिव्यांग, पिछड़े या फिर अति पिछड़े वर्ग से है। इसलिए इस अधिनियम के माध्यम से क्रमशः राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर "विधिक सेवा प्राधिकरण" आपको निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बनाये गए हैं- (1) अगर वादी या प्रतिवादी का मुक़दमा माननीय सर्वोच्च न्यायलय में चल रहा है, तब वह "राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण" में, या फ़िर सर्वोच्च न्यायलय की "विधिक सेवा समिति" में जाकर क़ानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है। आपके लिए दोनों विकल्प खुले हुए हैं। (2) अब अगर आपका मामला किसी राज्य के माननीय उच्च न्यायालय में चल रहा है, तब आप अगर चाहें तो उच्च न्यायालय द्वारा गठित "विधिक सेवा समिति" या फिर उसी प्रदेश में स्थित "विधिक सेवा प्राधिकरण" से क़ानूनी सहायता ले सकते हैं। इसके बाद आपके मामले से सम्बंधित वकील को आपकी विधिक सेवाओं के लिए नियुक्त कर दिया जायेगा। (3) जिन लोगों का मुक़दमा माननीय जिला न्यायालय में चल रहा है, वह लोग ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण में जा सकते हैं। प्रायः यह प्राधिकरण जिला न्यायालय में ही बनाया जाता है। (4)आपको आपके राजस्व न्यायालय में चलने वाले मामलों में भी क़ानूनी सहायता देने के लिए तहसील स्तर पर "विधिक सेवा प्राधिकरण" शुरू किये गये हैं। (5)क़ानून की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों में भी इस बात को पहुँचाने के लिए देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों व संस्थानों में "विधिक सेवा केंद्र" खोले गये हैं। आप यहाँ पर भी जा के अपने मामले से सम्बंधित विधिक परामर्श ले सकते हैं। प्राधिकरणों की ही तरह इन "विधिक सेवा केंद्रों" का भी अपना एक वकीलों का समूह होता है, जिससे की आपको वकील आसानी से मुहैया कराया जा सके।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Feke News

फेक न्यूज़ का जो पूरी तरह शिकार हो जाता हैं तंदुरुस्त होने के बावजूद भी बीमार हो जाता हैं