इज्ज़त सिर्फ उन लोगो की मत करो जो आपसे उमर में बड़े हो बल्कि इज्ज़त उन लोगो की करो जो सच में उसके लायक है फिर चाहे वो आपसे बड़े हो या छोटे
बुधवार, 13 मार्च 2019
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005
गुरुवार, 7 मार्च 2019
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35-A क्या है???
याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत भारत में पहले से ही शामिल हो गया था। एनजीओ द्वारा दायर याचिका के अनुसार, डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह द्वारा "संदेह, भ्रम या अस्पष्टता को दूर करने" के लिए भारत संघ में प्रवेश के नए नियमों पर हस्ताक्षर किए गए थे (अक्टूबर 1947 में इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्ससेशन के जरिये)। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ। राजेंद्र प्रसाद द्वारा पारित आदेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए, याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति का यह आदेश राज्य के लिए कानून बनाने के लिए संसद की शक्तियों को सीमित करता है। याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि अनुच्छेद 35-A "भारत की एकता की भावना" के खिलाफ है क्योंकि यह "भारतीय नागरिकों के वर्ग के भीतर एक वर्ग" बनाता है। अन्य राज्यों के नागरिकों को जम्मू-कश्मीर के भीतर रोजगार प्राप्त करने या संपत्ति खरीदने से प्रतिबंधित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। B - पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थी एक्शन कमेटी सेल द्वारा दायर याचिका वर्ष 2015 में, पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थी एक्शन कमेटी सेल ने एक रिट याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें विभाजन के बाद राज्य में बसने वाले शरणार्थियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात की गयी है। दरअसल पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के पास राज्य में संपत्ति हासिल करने या वोट करने का अधिकार नहीं है और उन्हें स्थायी निवासियों के रूप में मान्यता भी प्राप्त नहीं है। उनका तर्क है कि उनका अधिकार उन लोगों की तरह होना चाहिए जो पश्चिम पाकिस्तान चले गए लेकिन अंततः वापस लौट आए। राज्य द्वारा पारित वर्ष 1982 के पुनर्वास अधिनियम का उल्लेख करते हुए, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इसने ऐसे व्यक्तियों और उनके बच्चों को स्थायी नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार दिया (जो पश्चिम पाकिस्तान चले गए लेकिन अंततः वापस लौट आए)। C - याचिका चारू वली खन्ना द्वारा दाखिल याचिका दिल्ली स्थित कश्मीरी पंडित वकील चारु वली खन्ना की याचिका उनके निजी मसले से जुडी हुई है, पर यह भी अहम् सवाल उठाती है। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 35-A पुरुषों का पक्षधर है, चारू वली ने अदालत से कहा था, :जहाँ पुरुष बाहरी व्यक्ति (राज्य के बाहर) से शादी के बाद भी स्थायी नागरिकता का अधिकार नहीं खोते हैं, वहीँ अगर महिलाएं किसी बाहरी व्यक्ति से शादी करती हैं तो वह संपत्ति के ऊपर से अपना अधिकार खो देती हैं। उनका कहना है कि, राज्य के बाहर की एक महिला राज्य के पुरुष निवासी से शादी करने के कारण स्थायी निवासी बन जाती है, लेकिन राज्य के एक स्थायी नागरिक के रूप में जन्म लेने वाली महिला, बाहरी व्यक्ति से शादी करने के बाद अपना अधिकार खो देती है।
किन लोगों को निःशुल्क क़ानूनी सहायता नहीं दी जाएगी???
■निम्नलिखित मामलों में क़ानूनी सहायता नहीं मिलेगी;
●मानहानि, द्वेषपूर्ण अभियोजन, अदालत की अवमानना, झूठे साक्ष्य इत्यादि पर आधारित मामले।
●किसी भी चुनाव से सम्बंधित कोई कार्यवाही।
ऐसे मामले जहाँ पर दण्ड की आर्थिक राशि 50 /- रुपये से कम है।
●ऐसे अपराध के मामले जो कि आर्थिक और सामाजिक क़ानून के ख़िलाफ़ हैं। जैसे की ATM से पैसे चोरी करना, राज्य सम्पदा को नुकसान पहुँचना इत्यादि।
●आवेदक व्यक्ति मामले से सम्बंधित ही नहीं हैं।
■निम्नलिखित श्रेणी में आने वाले व्यक्ति को क़ानूनी सहायता नहीं दी जाएगी, और अगर दी जा रही है तो वापस ले ली जाएगी;
●ऐसा व्यक्ति जो कि खुद से सक्षम है और पात्रता मानक को पूरा नहीं करता।
●ऐसा व्यक्ति जिसके आवेदन पत्र में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे कि उसको सहायता दी जाये।
●ऐसा व्यक्ति जो कि गलत तरीके से जैसे दस्तावेज़ में धोखाधड़ी करके निःशुल्क सहायता प्राप्त करना चाहता हो।
●आवेदक द्वारा अधिवक्ता के साथ लापरवाही करना व ग़लत तरीके से पेश आना। आवेदक द्वारा दूसरे वक़ील से मदद लेना।
●आवेदक की मृत्यु हो जाना। लेकिन अगर मामला सिविल है तब उसके उत्तराधिकारी को क़ानूनी सहायता दी जाएगी।
●ऐसी कार्यवाही जो कि क़ानून व क़ानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल सिद्ध हो।
निःशुल्क क़ानूनी सहायता कैसे प्राप्त करें???
◆कोई भी व्यक्ति जो की उपरोक्त में से एक है निःशुक्ल क़ानूनी सहायता पाने के लिए अपने नजदीकी प्राधिकरण, समिति और विधिक सेवा केंद्र में लिखित प्रार्थना पत्र या फिर प्राधिकरण द्वारा जारी किये गए फॉर्म से आवेदन कर सकता है। अगर व्यक्ति लिखने में सक्षम नहीं है, तो वह मौख़िक माध्यम से अपना आवेदन कर सकता है, प्राधिकरण में मौज़ूद अधिकारी उस व्यक्ति की बातों को आवेदन पत्र में लिखेगा। शीला बारसे बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र में माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने कहा है की व्यक्ति की गिरफ़्तारी के तुरंत बाद पुलिस का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि नजदीकी विधिक सहायता केंद्र में इसकी इत्तला की जाये जिससे की समय रहते अभियुक्त की क़ानूनी सहायता की जा सके।
◆इसके अलावा आप "राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण" जिसे हम NALSA भी बुलाते हैं की वेबसाइट पर जाके देश के किसी भी "विधिक सेवा संस्थान व प्राधिकरण" से क़ानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए "ऑनलाइन एप्लीकेशन" फॉर्म ज़रूरी दस्तावेज़ों को अपलोड करके भर सकते हैं।
●क्या हैं ज़रूरी दस्तावेज़?
अगर हम जरुरी दस्तावेजों की बात करें तो मुख्य रूप से आपके पास एक एफिडेविट होना चाहिए जिसके साथ में आपका वार्षिक आय प्रमाण पत्र, पहचान पत्र हो। बाकी दस्तावेज़ आपके केस पर निर्भर करेंगे। ध्यान रहे यह कागज़ात विधिक सेवा केंद्र या प्राधिकरण में भी ले जाना और दिखाना ज़रूरी है।
●किस प्रकार की क़ानूनी सहायता दी जाएगी???
◆आपके लिए एक वक़ील नियुक्त किया जायेगा।
◆कोर्ट की कार्यवाही में जो भी ख़र्च होगा वह दिया जायेगा, जैसे की कोर्ट फीस आदि।
◆कोर्ट के आदेशों की प्रति एवं अन्य दस्तावेज जो भी न्यायालय की कार्यवाही से जुड़े होंगे आपको उपलब्ध कराये जायेंगे।
◆आपके मामले से सम्बन्धी कागजों को तैयार व प्रिंट कराया जायेगा।
◆आपके लिए आपकी भाषा में कोर्ट के आदेशों को अनुवादित भी किया जायेगा आदि।
कौन हैं निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्राप्त करने के हक़दार???
मुफ्त क़ानूनी सहायता आपका अधिकार है
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वह हमारे इदारे हमसे ही छीन कर चाहते हैं हम कलाम साहब जैसे बने
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गुलशने हिन्द को शोलों से बचाना होगा आतिशे बुग्ज़ ओ अदावत को बुझाना होगा हकीकत में आज़ादी का जश्न मनाने के लिए, हर दिल मे प्यार का दीप जलान...

