शुक्रवार, 11 मई 2018

सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम


सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण मेरठ सहित कई बड़े बड़े शहरों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत और आजादी के आंदोलन की आग भड़की तो उसकी लपटों से अमरोहा भी अछूता नहीं रहा। यहां के लोगों ने देश भक्ति का परिचय देते हुए कभी न भुलाये जाने वाले कारनामों को अंजाम दिया। थाना व तहसील को आग लगाकर अंग्रेजी अफसरों के दांत खट्टे कर दिए। फिरंगियों के थानेदार व जमादार की हत्या कर दी। अंग्रेजी शासकों द्वारा इस आंदोलन में हिस्सा लेने वालों का तरह तरह से दमन किया गया। उन्हें चौराहों पर फांसी पर लटका दिया या काले पानी की सजा दी गयी। अमरोहा में जंग-ए-आजादी के बारे में इतिहासकार पंडित भुवनेश शर्मा बताते हैं कि मेरठ में फौज की और से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की खबर 12 मई 1857 को अमरोहा पहुंची थी। उस समय मुरादाबाद जिले का प्रबंध जिला मजिस्ट्रेट सीबी साण्डर्स, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट जेजे कैम्पबैल तथा जज जेसी विल्सन के हाथ में था। 17 मई को शहर के चु¨नदा प्रभावशाली लोगों की एक बैठक दिल्ली व मेरठ की खबरों के मद्देनजर अमरोहा में उठाये जाने वाले कदम पर विचार के लिए दरगाह हजरत शाह विलायत में हुई। इस बैठक में दीवान सय्यद महमूद अली मुहल्ला दरबारे कलां और दरवेश अली खां के खानदान के लोगों सहित अन्य असरदार खानदानों के लगभग 30 व्यक्ति शामिल हुए। इन लोगों में सय्यद मुहम्मद हुसैन, सय्यद मुहम्मद यूसुफ अली, मौलवी सय्यद तोराब अली, सय्यद मुहम्मद बाकर, सय्यद बशारत हुसैन, सय्यद शब्बीर अली, विलायत अली खां, मौलवी बशारत अली, महरबान अली, सैय्यद अली मुजफ्फर खां, मीर बुनियाद अली, मौलवी करीम बख्श अब्बासी और सय्यद मुहम्मद हसन खां प्रमुख रूप शामिल रहे। कुछ लोगों के विरोध के बावजूद इस बैठक में निर्णय लिया गया कि यदि दिल्ली और मेरठ जैसे हालात जिला मुरादाबाद में भी बन जाते हैं तो अमरोहा में भी अंग्रेज अलमदारी को खत्म कर दिया जाये। इधर जिला मजिस्ट्रेट साण्डर्स 18 मई को मेरठ के लिए रवाना हुआ, वह रजबपुर तक ही पहुंचा कि उसे सूचना मिली कि मुरादाबाद में जेल तोड़कर कैदियों को आजाद कर दिया गया और अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत शुरू हो गयी। यह खबर पाकर वह मुरादाबाद वापस लौट आया। 19 मई को सय्यद गुलजार अली निवासी मुहल्ला दरबारे कलां जो मुरादाबाद में वकील थे, जेल से आजाद हुए कैदियों के एक समूह को लेकर रातों-रात अमरोहा आ गये। उनके यहां पहुंचने पर शेख रमजान अली के दरबारे कलां स्थित मकान पर रात भर खुफिया बैठक चलती रही। नतीजतन हजारों लोगों की भीड़ ने 20 मई की सुबह अमरोहा के थाने पर हमला कर दिया जो उस समय मुहल्ला मछरट्टा में स्थित था। यहां आजकल पुलिस चौकी है। इस हमले में थानेदार मीर मदद अली और जमादार शहामत खां का कत्ल कर थाने में आग लगा दी गयी। थाने पर हमले के बाद लोगों ने तहसील पर धावा बोल दिया। तहसील के खजाने से सत्रह हजार रुपया लूट लिया और तमाम दफ्तर का रिकार्ड जलाकर खाक कर दिया। मौजूदा समय में पुलिस चौकी मछरट्टा के दरवाजे के ठीक सामने सड़क के किनारे जो दो कब्र हैं उनमें एक मीर मदद अली थानेदार व दूसरी शहामत खां जमादार की है। इस घटना की सूचना पर जिला मजिस्ट्रेट साण्डर्स ने अमरोहा के हालात सुधारने के लिए राजा गुरु सहाय को 24 मई को अमरोहा भेजा जो उस वक्त मुरादाबाद कलेक्ट्री में नाजिर था। दूसरे दिन 25 मई को जज जेसी विल्सन भी अमरोहा आ पहुंचा। विल्सन के अमरोहा आने की खबर पाकर सय्यद गुलजार अली अमरोहा से चले गये। इधर विल्सन ने बागियों को सबक सिखाने और अंग्रेज अलमदारी को कायम करने के उद्देश्य से सय्यद गुलजार अली आदि के मकानों को तुड़वा कर तहस नहस कर दिया। आजादी की इस लड़ाई में हिस्सा लेने वाले बहुत लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा बागयान-ए-अमरोहाके शीर्षक से सैकड़ों विद्रोहियों की एक सूची तैयार की गयी। आजादी की इस लड़ाई में हिस्सा लेने वाले अनेक लोगों की जायदाद जब्त कर ली गई। उन्हें फांसी और काले पानी की सजा दी गई।

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