गुरुवार, 3 मई 2018

भारत की पहली महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी

देश में व लंदन में लॉ की प्रैक्टिस करने वाली पहली बैरिस्टर कॉर्नेलिया सोराबजी कॉर्नेलिया सोराबजी (15 नवंबर 1866 - 6 जुलाई 1954) एक भारतीय महिला थी, जो बॉम्बे विश्वविद्यालय से पहली महिला स्नातक, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कानून का अध्ययन करने वाली पहली महिला (वास्तव में, किसी भी ब्रिटिश विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाली पहली भारतीय राष्ट्रीय), भारत में पहली महिला वकील , और भारत और ब्रिटेन में कानून का अभ्यास करने वाली पहली महिला। 2012 में, लंदन के लिंकन इन में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया था। 15 नवंबर, 1866 में महाराष्ट्र के नासिक में जन्मीं कॉर्नेलिया (Cornelia Sorabji) न केवल भारत की पहली महिला वकील हैं, बल्कि देश में व लंदन में लॉ की प्रैक्टिस करनेवाली पहली बैरिस्टर भी हैं. उन्हें देश व समाज सेवा की प्रेरणा उनकी मां से विरासत में मिली. उनकी मां फ्रांसिना फोर्ड नारी शिक्षा की प्रबल पक्षधर थीं. उन्होंने पुणे में लड़कियों की पढ़ाई के लिए कई स्कूल भी खोले. कॉर्नेलिया छह भाइयों में इकलौती बहन थीं. वे लेखिका व सोशल वर्कर भी थीं. **………कार्नेलिया 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं. उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था। पर कार्नेलिया तो एक जुनून का नाम था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को कानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की माँग उठाई. अंतत: 1907 के बाद कार्नेलिया को बंगाल,बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया। एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं। यद्यपि 1954 में कार्नेलिया का देहावसान हो गया जब वह लंदन में थी, पर आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है। 1894 में भारत लौटने पर, सोराबजी ने पर्दानाशीन महिलाओं की ओर से सामाजिक और सलाहकार कार्य में शामिल हो गयीं, जिन्हें बाहर पुरुष दुनिया के साथ संवाद करने से मना किया गया था कई मामलों में, इन महिलाओं की काफी संपत्ति होती थी, लेकिन उनकी रक्षा के लिए आवश्यक कानूनी विशेषज्ञता तक पहुंच नहीं थी। सोराबजी को काठियावाड़ और इंदौर के शासकों के ब्रिटिश एजेंटों से पर्दानशीन की ओर से अनुरोध करने के लिए विशेष अनुमति दी गई थी, लेकिन वह एक महिला के तौर पर अदालत में उनकी रक्षा करने में असमर्थ थीं, उन्हें भारतीय कानूनी व्यवस्था में पेशेवर ओहदा प्राप्त नहीं था। इस स्थिति का समाधान करने की उम्मीद में, सोराबजी ने 1897 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी की एलएलबी परीक्षा के लिए खुद को प्रस्तुत किया और 1899 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील की परीक्षा में भाग लिया। फिर भी, उनकी सफलताओं के बावजूद, सोरबजी को वकील के तौर पर मान्यता नहीं मिली जबतक कि 1923 को महिलाओं को अभ्यास करने से रोकने वाले कानून को नहीं बदला गया।प्रांतीय न्यायालयों में महिलाओं और नाबालिगों का प्रतिनिधित्व करने एक महिला कानूनी सलाहकार प्रदान करने के लिए सोराबजी ने 1902 के शुरू में भारत कार्यालय में याचिका दायर करने की शुरुआत की थी। 1904 में, बंगाल की कोर्ट ऑफ वार्ड में लेडी असिस्टेंट नियुक्त किया गया था और 1907 में इस तरह की प्रतिनिधित्व की आवश्यकता के कारण, सोराबजी बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम के प्रांतों में काम कर रही थीं। अगले 20 साल की सेवा में, अनुमान लगाया गया है कि सोराबजी ने 600 से अधिक महिलाओं और अनाथों को कानूनी लड़ाई लड़ने में मदद की, कभी-कभी कोई शुल्क नहीं लिया। वह बाद में इन मामलों में से कई को अपने कार्य बिटवीन द ट्वाईलाईट्स व दो आत्मकथाओं में लिखेंगी। 1924 में, भारत में महिलाओं के लिए कानूनी पेशा खोला गया था, और सोरबजी ने कोलकाता में अभ्यास करना शुरू कर दिया था। हालांकि, पुरुष पूर्वाग्रह और भेदभाव के कारण, वह अदालत के सामने पेश करने के बजाय मामलों पर राय तैयार करने तक ही सीमित थीं। समाज सुधार तथा कानूनी कार्य के अलावा उन्होने अनेकों पुस्तकों, लघुकथाओं एवं लेखों की रचना भी कीं। उन्होने दो आत्मकथाएँ भी लिखीं - India Calling (1934) तथा India Recalled (1936). • 1902: Love and Life behind the Purdah (short stories concerning life in the zenana (women’s domestic quarters), it is one of the most extensive ethnographic studies ofpurdahnashins to date) • 1904: Sun-Babies: studies in the child-life of India • 1908: Between the Twilights: Being studies of India women by one of themselves (details many of her legal cases while working for the Court of Wards); Social Relations: England and India • 1916: Indian Tales of the Great Ones Among Men, Women and Bird-People (legends and folk tales) • 1917: The Purdahnashin (works on women in purdah) • 1924: Therefore (memoirs of her parents) • 1930: Gold Mohur: Time to Remember (a play) • 1932: A biography of her educationist sister, Susie Sorabji सोरबजी 1929 में उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुईं, और लंदन में बस गयीं, सर्दियों के दौरान भारत की यात्रा पर आतीं। 6 जुलाई 1954 को लंदन के मैनोर हाउस में ग्रीन लेन्स पर नॉर्थम्बरलैंड हाउस में अपने लंदन के घर में इनका निधन हो गया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Feke News

फेक न्यूज़ का जो पूरी तरह शिकार हो जाता हैं तंदुरुस्त होने के बावजूद भी बीमार हो जाता हैं