शनिवार, 10 नवंबर 2018

लोक अदालत


लोक अदालत लोक अदालतों के द्वारा लोगों के आपसी विवाद , जो न्यायालय के समक्ष हों , उनका निपटारा मित्रतपूर्ण ढंग से स्वेच्छा से समाधान निकाला जाता है। लोक अदालत वादी-प्रतिवादियों , कानून व्यवसाय के सदस्यों, सामाजिक कार्य में रत समूहों तथा न्यायिक अधिकारियों के मुकदमे के निष्पक्ष समझौते तक पहुंचने की प्रक्रिया में प्रबुद्ध भागीदारी का मौका देती है । लोक अदालत का निर्णय अधिनिर्णय है औऱ इसके द्वारा दिया गया फैसला अदालतों से मान्यता प्राप्त है । ऐसे फौजदारी मामलों को छोंड़कर जिनमें समझौता गैरकानूनी है , अन्य सभी तरह के मामले लोक अदालतों द्वारा निपटाए जाते हैं । लोक अदालतों के फैसले दीवानी अदालतों के फैसलों की तरह सभी पक्षों को मान्य होते हैं । लोक अदालत में तमाम तरह के सिविल और समझौतावादी क्रिमिनल मामलों का निपटारा किया जाता है। क्रिमिनल केस दो तरह के होते हैं : समझौतावादी और गैर – समझौतावादी क्रिमिनल केस। गैर-समझौतावादी मामलों को लोक अदालत में रेफर नहीं किया जाता है। इऩमें बलात्कार, हत्या, लूट, देशद्रोह, डकैती, हत्या की कोशिश आदि से संबंधित मामले शामिल हैं। हालांकि समझौतावादी मामलों को लोक अदालत में भेजा जा सकता है। इनमें बिजली चोरी , मारपीट , मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल, चेक बाउंस, ट्रैफिक चालान, लेबर लॉ आदि से संबंधित मामले होते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष मामले को निपटाने के लिए तैयार हों। जब एक पक्ष केस को लोक अदालत में रेफर करने के लिए अदालत से आग्रह करता है तो अदालत दूसरे पक्ष से उसकी इच्छा जानने की कोशिश करती है। जब दोनों पक्षों में समझौते की गुंजाइश दिखती है तो मामले को लोकअदालत में रेफर कर दिया जाता है। लोक अदालत में पेश होकर दोनों पक्ष अपनी बात कोर्ट के सामने रखते हैं। अदालत दोनों पक्षों को सुनती है और मामले का निपटारा किया जाता है

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