मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

दरगाह_शरीफ ☆हुजूर ताजुश्शरिया अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान फ़ाज़िले बरेलवी رضي الله عنه


जहाँ बानी अता करदे भारी जन्नत हिबाह करदें नबी मुख्तार-ऐ कुल है जिसको जो चाहें अता करदें जहाँ में उनकी चलती है वो दम में क्या से क्या करदें ज़मीं को आसमाँ करदें सुर्रियाँ को सरां करदें फ़िज़ा में उड़ने वाले यूँ ना इतरायें निदा करदें वो जब चाहें जिसे चाहें उसे फ़रमा रवा करदें मेरी मुश्किल को यूँ आसान मेरे मुश्किल कुशा करदें हर एक मौजे बला को मेरे मौला ना ख़ुदा करदें अता हो बेख़ुदी मुझकों ख़ुदी मेरी हवा करदें मुझे यूँ अपनी उल्फ़त में मेरे मौला फ़ना करदें जहाँ में आम पैग़ाम-ऐ-शाहे अहमद रज़ा करदें पलट कर पीछे देखे फिर से तजदीदे-वफ़ा करदें नबी से जो हैं बेगाना उसे दिल से जुदा करदें पिदर मादर बिरादर माल-ओ-जाँ उन पर फिदा करदें मुनव्वर मेरी आँखों को मेरे शमशुद दोहा करदें ग़मो की धूप में वो साया-ऐ-जुल्फ़े दोता करदें किसी को वो हँसाते हैं किसी को वो रुलाते है वो यूँ ही आज़माते है अब तू फैसला करदें गुले तय्यब में मिल जाओ गुलो में मिल के खिल जाओ हयाते जावीदानी से मुझे यूँ आंशना करदें उन्हें मंज़ूर है जब तक ये दौर आज़माइश हैं ना चाहे तो अभी वो खत्म दौरे-ऐ-इब्तिला करदें सगे आवारा-ऐ-सेहरा से उकता सी गयी दुनियां बचाओ अब ज़माने का सगन-ऐ-मुस्तफा करदें मुझे क्या फिक्र हो मेरे अख़्तर मेरे यावर गई वो यावर बालाओ को जो मेरी खुद गिरफ़्तारे बला करदें #दरगाह_शरीफ ☆हुजूर ताजुश्शरिया अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान फ़ाज़िले बरेलवी رضي الله عنه

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