सोमवार, 30 जुलाई 2018

शरीयत और तरीकत


ज़ाहिरी और बात़िनी शरीअ़त की ह़क़ीक़त👇 👉 सवाल👇 मज्ज़ूब (मस्त) या फ़क़ीर का नाम देकर, ख़िलाफ़े शरई़ कामों को अपने लिए जाएज़ करार देते हुए कहते हैं कि ये त़रीक़त का मुआ़मला हैं, ये तो फ़क़ीरी लाइन हैं हर एक को समझ में नही आ सकती! फिर अगर उन से नमाज़ पढ़ने को कहा जाए तो مَعَاذَاللّٰه عَزَّوَجَلَّ कहते हैं कि ये ज़ाहिरी शरीअ़त ज़ाहिरी लोगों के लिए हैं, हम बात़िनी अज्साम के साथ ख़ानए काबा या मदीने में नमाज़ पढ़ते हैं वग़ैरा वग़ैरा! ऐसे लोगों के बारे में क्या हुक्मे शरई़ हैं?``` 👉 *जवाब*👇 ```शरीअ़त छोड़कर ख़िलाफ़े शरई़ कामों को त़रीक़त या फ़क़ीरी लाइन करार देना या त़रीक़त को शरीअ़त से अलग जानना यक़ीनन गुमराही हैं! ➡आला ह़ज़रत, शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رحمة الله تعالى عليه शरीअ़त और त़रीक़त के बाहमी तअ़ल्लुक़ात को यूं बयान फ़रमाते हैं कि: "शरीअ़त मम्बअ़ हैं और त़रीक़त इसमें से निकला हुआ एक दरिया हैं! उ़मूमन किसी मम्बअ़ यानी पानी निकलने की जगह से अगर दरिया बहता हो तो उसे ज़मीनों को सैराब करने में मम्बअ़ की ह़ाजत नही होती लेकिन शरीअ़त वो मम्बअ़ हैं कि इससे निकले हुए दरिया यानी त़रीक़त को हर आन इसकी ह़ाजत हैं कि अगर शरीअ़त के मम्बअ़ से त़रीक़त के दरिया का तअ़ल्लुक़ टूट जाए तो सिर्फ़ येही नही कि आइन्दा के लिए इसमें पानी नही आएगा बल्कि ये तअ़ल्लुक़ टूटते ही दरियाए त़रीक़त फ़ौरन फ़ना हो जाएगा"!``` *(फ़तावा रज़विय्या,* *जिल्द-21,* *(सफ़ह़ा-525, मुलख़्ख़सन)* 👉```सदरुश्शरिअ़ा ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رحمة الله تعالى عليه फ़रमाते हैं: "त़रीक़त मुनाफ़िये शरीअ़त (यानी शरीअ़त के ख़िलाफ़) नही वो शरीअ़त का ही बात़िनी ह़िस्सा हैं, कुछ जाहिल मुतसव्विफ़ जो ये कह दिया करते हैं कि "त़रीक़त और हैं शरीअ़त और" महज़ गुमराही हैं और इस ज़ोमे बातिल (ग़लत ख़याल) की वजह से अपने आप को शरीअ़त से आज़ाद समझना सरीह़ कुफ़्र व इल्ह़ाद (कुफ़्र व बे दीनी) हैं! अह़कामे शरइ़य्या की पाबन्दी से कोई वली कैसा ही अ़ज़ीम हो सुबुक दोश नही हो सकता! कुछ जाहिल जो ये बक देते हैं कि "शरीअ़त रास्ता हैं, रास्ते की ह़ाजत उनको जो मक़्सद तक न पहुंचे हो, हम तो पहुंच गए"!``` 👉```सय्यिदुत्त़ाइफ़ा ह़ज़रते जुनैद बग़दादी رحمة الله تعالى عليه ने उन्हे (ऐसे जाहिलों को) फ़रमाया: "صَدَقُؤا لَقَدٔ وَصَلُؤا، وَلٰكِنٔ اِلٰى اَئنَ؟ اِلٰى النَّار" यानी "वो सच कहते हैं बेशक पहुंचे, मगर कहां? जहन्नम को"! (اليواقيت والجواهر، الفصل الرابع، المبحث السادس و العشرون، باختلاف بعض الالفاظ، ص-٢٠٦)``` 👉```अलबत्ता अगर मज्ज़ूबियत से अ़क़्ले तक्लीफ़ी ज़ाइल हो गई हो जैसे ग़शी वाला तो उससे क़लमे शरीअ़त उठ जाएगा मगर ये भी समझ लो जो इस क़िस्म का होगा उसकी ऐसी बातें कभी न होंगी, शरीअ़त का मुक़ाबला कभी नही करेगा!``` (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा अव्वल, जिल्द-1, सफ़ह़ा-265-267)

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